रामचरितमानस के सुंदरकांड के 58वें दोहे की छठी चौपाई -
ढोल गॅंवार सूद्र पसु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी ।।
इस चौपाई में ताड़ना शब्द का अर्थ समझना अति आवश्यक है..
1. ढोल के बारे में यदि बात करें तो जबतक ढोल पर हथेलियों की थाप नहीं पड़ेगी, तबतक ढोल में कंपन उत्पन्न नहीं होता तथा ध्वनि भी नहीं होगी, यह हमारे सुसुप्त ज्ञान का पर्याय भी है, जब तक हम स्वयं को स्वयं ही झकझोड़ते नहीं हैं तबतक हम स्वयं की विशेषताओं से भी अनभिज्ञ रहते हैं । अत: यहां ताड़ना का अर्थ पीटने से है।
2. गंवार की यदि बात करें तो जबतक गॉंवों का विकास नहीं होगा तथा केवल शहर ही विकसित होते रहेंगे तो वह मात्र उपरी धरातल पर किया गया विकास ही कहलायेगा। अत: यहां ताड़ना का अर्थ दृष्टि से है, ग्राम वासियों पर दृष्ट बनाए रखने की आवश्यकता है तथा उन्हें विकास के मार्ग पर अग्रसर रखना आवश्यक है तभी विकास जड़ से संभव है।
3. सूद्र की यदि बात करें तो मनुष्य अपने पतित कर्मों से ही सूद्र जाना जाता है, इसका किसी जाति से कोई लेना-देना नहीं है। सूद्र अर्थात पतित कर्म करनेवाले पर भी दृष्टि रखते हुए उनका सही मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। यदि एक क्षत्रिय भी निम्न कर्म करता है तो वह भी सूद्र की श्रेणी में ही आएगा, केवल कर्म प्रधान है। अत: यहां भी ताड़ना का पर्याय दृष्टि बनाए रखने से है।
4. पशु की बात करें तो पशु अपने विचार मुख से व्यक्त नहीं कर सकते हैं, अत: उनके प्रति स्नेह की दृष्टि रखते हुए ही उनके साथ उचित व्यवहार करना उचित है,किसी प्रकार से उन्हें हानि पहुँचाना सही नहीं है। अत: यहॉं भी ताड़ना का तात्पर्य दृष्टि से है।
5. नारी के विषय में भी ताड़ना का अर्थ दृष्टि से ही है। भले ही वर्तमान समय में हमारी नारी शक्ति उभरकर सामने आयी हैं परंतु नारी की सौम्यता तथा कोमल हृदय का लाभ उठाकर समाज के कुछ अनैतिक समूह उन्हें व्यभिचार के मार्ग पर अग्रसर करने का प्रयास करते हैं, जिनपर दृष्टि रखते हुए नारी के सम्मान की रक्षा करना आवश्यक है। अत: यहॉं ताड़ना शब्द का पर्याय समाज का नारी के प्रति सम्मानपूर्ण दृष्टि से है।
किसी भी विषय का पूर्ण ज्ञान अति आवश्यक है, भ्रम को न बढायें परंतु अपने अंदर के ज्ञान को जागृत करें। हमें अपने धर्मग्रंथों का सदा सम्मान करना चाहिए। उन पर प्रश्न चिन्ह लगानेवाले स्वयं अपने शत्रु हैं, उनका भला तो स्वयं वे भी किसी प्रकार से नहीं कर सकते हैं।
लेखिका - नेहा सिंह राजपूत